भगवान समदर्शी हैं, सबके लिए एक समान है।सर्वत्र उनकी कृपा वृष्टि हो रही है, परंतु हम उनकी कृपा पाने से वंचित हैं। संसारी बंधनों में बंधे चौरासी लाख योनि के चक्कर में पड़े हुए हैं। कुछ लोग तो कृपा पाने में सफल रहे और अपनी बिगड़ी बना ली। इसका मतलब भगवान की कृपा पाने के लिए कुछ शर्त होगी। जिसने उस शर्त को पूरा किया , उन पर भगवान का अनुग्रह हो गया। तो भगवान की कृपा पाने के लिए “शरणागति” की शर्त पूरी करना अनिवार्य है। इसके लिए शरणागति का तात्पर्य जानना आवश्यक है।जैसा की पहले ही बताया गया कि भगवान की कृपा वृष्टि सर्वत्र हो रही है लेकिन जीव, विमुखता के कारण इसका लाभ नहीं ले पाता है।इसे यूं समझें, जैसे मूसलाधार वर्षा हो रही हो और पात्र को उल्टा रख दें, तो एक बूंद भी पानी एकत्रित नहीं होगा।ठीक इसी प्रकार भगवान की कृपा भी बरस रही है, समस्या यह है कि हम विमुख हैं, भगवान की ओर पीठ किए हुए हैं इसलिए हम कृपा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। भगवान की कृपा में कोई कमी नहीं है।वर्षा का पानी ऊसर भूमि में गिरा, ऐसे ही बह गया, ऊपजाऊ भूमि में गिरा तो वृक्ष आदि में परिवर्तित हो गया। गंदे नाले में गिरा तो गंदा नाला बन कर बहने लगा। गंगाजी में गिरा तो गंगाजी के रूप में बहने लगा और समुद्र में स्वाति नक्षत्र में सीप में गिरा तो मोती बन गया। तो कहने का अर्थ यह कि जैसा पात्र वैसा परिणाम होता है।उसी प्रकार भगवान की कृपा वृष्टि एक समान हो रही है। हम उस वृष्टि में खड़े हैं और कृपा से वंचित हैं तो दोष हमारे पात्र का है। हम को हमारे पात्र को भगवान के सन्मुख करना होगा अर्थात स्वयं को भगवान को समर्पित करना होगा।
भागवत के ११वें स्कंध में भगवान उद्धव से कहते हैं कि हे उद्धव, यदि तू निर्भय, निर्द्वंद, निर्मोही होना चाहता है तो मेरे युगल चरण की शरण में आना होगा । परंतु हम जीव इसका उल्टा करते हैं। हम मंदिर में जाकर प्रार्थना तो करते कि “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” हे भगवान आप ही मेरी मां हो, आप ही मेरे पिता हो ,सिर्फ मुख से कहते हैं। अंतः करण में ये भाव नहीं है। अंतः करण में तो यह भाव रहता है कि असली पिता तो घर में हैं जिनकी प्रॉपर्टी में मेरा हिस्सा है। भगवान के तो कभी दर्शन भी नहीं हुए, जबकि सालों से मंदिर जा रहे हैं। भगवान को पिता तो मानते हैं लेकिन उसके लिए हमारी शरणागति मात्र १ या २ प्रतिशत होती है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि भगवान ही हमारे असली पिता हैं। वे तो हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि हम उनकी शरण में जाए और वे अपनी कृपा द्वारा हमें मालामाल कर दें।
Different Avatars of Ram and Ravan in Different Kalpas
In Tulasidas’s Shree Ramcharitmanas Lord Shiva tells Parvatiji that the Supreme Lord takes avatar and descends to earth for various reasons. One cannot pinpoint and say that the Lord takes avatar “only for this” reason. ...
भगवान की कृपा का रहस्य
भगवान समदर्शी हैं, सबके लिए एक समान है।सर्वत्र उनकी कृपा वृष्टि हो रही है, परंतु हम उनकी कृपा पाने से वंचित हैं। संसारी बंधनों में बंधे चौरासी लाख योनि के चक्कर में पड़े हुए हैं। ...
Why is there Suffering in the World, If God is Merciful? – Part 2
Suffering in the world is a universal truth and no soul can escape from it. The primary teachings of the Buddha emphasize that everything is transitory in this world. All things pleasant will inevitably change. ...
An Extraordinary Tale of Rishyasringa
Rishyasringa: Brother-in-law of Lord Ram Sage Vibhandak is engaged in Tapasya (penance) since his childhood much to the chagrin of Indra. Fearing Vibhandak can usurp heaven with his powers, Indra sends Urvashi to distract Vibhandak. ...
Why is there Suffering in the World, If God is Merciful? – Part 1
Suffering in the world is as inevitable as the birth and death of human beings. The Buddha’s First Noble Truth states the inevitability of suffering in the world. Old age, sickness, death, the transitoriness of ...
मन नाम का यंत्र
मन नाम का यंत्र निरंतर विचार उत्पन्न करता है । यदि हम सद्विचारों का अभ्यास करें, तो हम अपनेआप को तीव्र गति से बदल पाएंगे। हम मानसिक अभ्यास की क्षमता पर विचार नहीं करते, यह ...