संसार मे सब अपने अपने स्वार्थ के कारण स्नेह करते हैं।हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं, कहाँ जाना है ? हम शरीर हैं या आत्मा हैं ? इन सब प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना होगा, वर्ना ये अनमोल जीवन संसारी लोगों में आसक्ति करते करते व्यर्थ चला जाएगा। जैसे इससे पहले के अनंत जन्म व्यर्थ चले गए । शंकराचार्य जी भी कहते हैं कि उपर्युक्त प्रश्नों पर विचार करना परमावश्यक है।
संसार के स्वरूप को जानना होगा। श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार में कर्तव्य पालन करना है, आसक्ति नहीं करनी है।जैसे एक स्कूल टीचर अपनी पूर्ण योग्यता, शक्ति व मेहनत से पढ़ाती है, कोई विद्यार्थी प्रथम आता है, कोई द्वितीय अथवा कोई फेल हो जाता है। टीचर के अंतःकरण में किसी प्रकार की खलबली नहीं होती क्योंकि उसने आसक्तिरहित कार्य किया। ठीक वैसे ही हमको भी पूरी निष्ठा से आसक्तिरहित कर्तव्य पालन करना है और मन भगवान में लगाना है क्योकि हमारा वास्तविक संबंधी भगवान ही है।इसे एक और बढ़िया उदाहरण से समझें।
एक अरबपति सेठजी का इकलौता बेटा जिसकी कुछ समय पहले ही शादी हुई, पत्नी उसे अपना प्राणप्रिय मानती थी, दोस्त , रिश्तेदार आगे पीछे घूमते थे । माता -पिता का बहुत लाड़ला बेटा था। एक बार संयोगवश किसी बाबाजी का प्रवचन सुनने चला गया।वहाँ उसने सुना, बाबाजी समझा रहे थे, संसार में सब स्वार्थी होते हैं, आदि ।
उसे बात कुछ जमी नहीं, सोचने लगा, मेरे घर के लोग, नाते रिश्तेदार तो मुझे बहुत प्यार करते हैं, मेरा ध्यान रखते हैं और बाबाजी का कहना है, सब स्वार्थी होते हैं।बाबाजी के पास जाकर उसने बोला, मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं।कृपया मुझे समझाये क्योंकि मुझे आपने जो बताया उसके विपरीत अनुभव में आ रहा है।बाबाजी ने तो शास्त्रों वेदों का ज्ञान दिया था, वे समाधान के लिए तुरंत तैयार हो गए। दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई।बाबाजी ने लड़के से कहा कि तुम घर जाकर, जिनके लिए तुम्हारे मन में यह भाव है कि मुझसे प्रेम करते हैं, उन सब लोगों को कारोबार संबंधी मंत्रणा के लिए एक साथ एक कमरे में बुला लो।चाय पीते हुए अचानक छाती में दर्द का अभिनय करते हुए सोफे पर गिर जाना और उसी समय मैं (बाबाजी) वहां पहुंच जाऊंगा।मैं तुम्हारे ऊपर हाथ फेरूंगा, सहलाऊंगा और तुम तड़पना बन्द करके ध्यान से सबकी बातें सुनना।योजनानुसार लड़के ने घर जाकर वही सब किया। सही समय पर बाबाजी भी पहुंच गए । बाबाजी के सहलाते ही लड़का शांत हो गया ।
बाबाजी ने कहा अब कुछ नहीं हो सकता, प्रारब्धवश लड़के की आयु इतनी ही थी। इतना सुनते ही सब परेशान हो गए, विलाप करने लगे । परन्तु कुछ संभलकर बाबाजी से लड़के को पुनः जीवित करने की मनुहार करने लगे । कुछ मान मनुव्वल के बाद बाबाजी असम्भव को संभव करने तैयार हो गए। योजना के अंतर्गत बाबाजी ने एक गिलास पानी मंगवाया, उस लड़के पर से उतारा, कुछ मंत्र फूंके और कहने लगे लड़के को बचाने का एकमात्र उपाय यही है कि कोई इस पानी का सेवन कर ले तो लड़का जीवित हो जाएगा परन्तु जो ये पानी पियेगा वो इस लड़के के स्थान पर मर जायेगा। इतना सुनते ही दोस्त , रिश्तेदार धीरे धीरे वहाँ से खिसकने लगे । आख़री में वहाँ सिर्फ लड़के के माता, पिता व पत्नी ही बचे। बाबाजी ने पिताजी को पानी पीने का कहा तो वे अपने कारोबार का हवाला देकर पीछे हट गए । माताजी को पानी पीने का कहा गया तो वो भी अपने पति की सेवा का कह कर ना बोल गई। अब पत्नी को कहा गया , वो सोचने लगी, ये वृद्ध लोग ना कह रहे हैं और मेरे विवाह को तो अभी कुछ ही समय हुआ है, आगे पूरा जीवन पड़ा है।उसने भी अपना सिर झुका लिया। किसी की भी इच्छा न देखते हुए बाबाजी जाने को उद्यत हुए , उन तीनों ने बाबाजी को ही पकड़ लिया और पानी पीने का आग्रह करने लगे क्योकि बाबाजी के आगे पीछे तो कोई नहीं है। अब वो लड़का जो लेटा हुआ सब सुन रहा था , उठ कर बाबाजी के चरणों में गिर गया कि बाबाजी आप सब सत्य कह रहे थे , मुझसे ही समझने में भूल हुई। तो हमको संसार में आसक्तिरहित कर्तव्य करने का अभ्यास करना होगा। संसारी सम्बंधी के लिए हम अपना समय, अपनी शक्ति के साथ साथ पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं इसीलिए हम अब तक अपने लक्ष्य ‘भगवान ‘ को प्राप्त नहीं कर पाए। यह अभ्यास करने से ही सम्भव हो सकेगा।
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