मन नाम का यंत्र निरंतर विचार उत्पन्न करता है । यदि हम सद्विचारों का अभ्यास करें, तो हम अपनेआप को तीव्र गति से बदल पाएंगे। हम मानसिक अभ्यास की क्षमता पर विचार नहीं करते, यह शारीरिक अभ्यास की क्षमता से कई गुना ज्यादा है। मन की शक्ति का उपयोग नहीं करते तो दुरुपयोग स्वतः ही हो जाता है। चिंतन शक्ति बहुत प्रभावशाली है, उसको नियंत्रित नहीं करें, तो वह चिंता बन जाती है। जैसे एक टीचर ने कक्षा में आधा पानी से भरा गिलास हाथ में पकड़ा और विद्यार्थियों से पूछा कि यदि इसे दो मिनिट, दो घंटे और चौबीस घंटे पकड़े रहे तो किस अवस्था सबसे अधिक कष्ट होगा? स्वाभाविक है जवाब चौबीस घंटे होगा। ठीक उसी तरह चिंता को दो मिनिट मन में बनाए रखने पर कम कष्ट, दो घंटे बनाए रखने पर कुछ अधिक कष्ट और चौबीस घंटे बनाए रखने पर बहुत अधिक कष्ट होगा। यहीं मन की शक्ति का उपयोग करना है। अच्छे विचारों के अभ्यास से मन को नियंत्रित करना है वर्ना गलत अभ्यास आसानी से हो जाता है।चिंता और चिता दोनों शरीर को जलाते हैं।चिता निर्जीव को और चिंता जीवित व्यक्ति को जलाती है।चिंतन शक्ति को नियंत्रित करके सही दिशा में लगायेंगे तो उसमे परिवर्तन अवश्य आएगा । हमारे अंदर मन नाम की जो मशीन है,वह निरंतर विचार ही तो उत्पन्न करती है।
मन विचारों का बागीचा है जैसे बीज रूपी विचार उसमें डालेंगे वैसे ही हमारे द्वारा कर्म होंगे।हम अपने मन रूपी बागीचे के माली हैं। अच्छे विचार डालेंगे तो अच्छे कर्म होंगे। हमको सावधान रहते हुए मन रूपी बागीचे से जंगली घास को हटाना है। यदि हम सावधान नहीं रहे और बुरे विचारों को मन में आने दिया तो हमारा मन काम, क्रोध, लोभ, मोह से युक्त हो जायेगा। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मन से निकृष्ट और गलत विचारों को निकले और सही विचारों की सिंचाई कर सुरदुर्लभ मानव देह का लाभ उठाएं।परिस्थिति हमको नहीं बनाती, हम परिस्थिति को आकर्षित करते हैं। जिस दिन हम ये बात समझ जायेंगे उस दिन से दोषारोपण बंद कर देगें और आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हो जायेंगें। मन को नियंत्रित करने में बुद्धि की अहम भूमिका है। हमें बुद्धि के द्वारा मन को नियंत्रित करना चाहिए। मनुष्य की बुद्धि में इतनी शक्ति कि यदि वह निश्चय कर ले, तो मन बुद्धि के विरुद्ध नहीं जा सकता है। इसे इस उदाहरण से समझें।एक आदमी चार दिनों से भूखा है और पांचवे दिन उसके सामने विभिन्न तरह के व्यंजनों से सजी हुई भोजन थाल रख दी जाए । उसकी प्रसन्नता का तो कोई ठिकाना न होगा । अब वह पहला निवाला लेने ही वाला हो और कोई उसके कान में आकर कह दे कि इस भोजन में विष मिला हुआ है। वह तुरंत खाने का निवाला फेंक देगा। अब उससे पूछा जाय कि क्या आपने किसी को भोजन में विष मिलाते देखा है? उत्तर होगा नहीं, आप भोजन खाने का आग्रह करें, परंतु लाख मिन्नतों के बावजूद वह भोजन ग्रहण नहीं करेगा । अब आप उसे भोजन करने के लिए लाख रुपए का लालच दे, फिर भी वो तैयार न होगा, इतना भूखा होने पर भी। ऐसा बुद्धि के दृढ़ संकल्प के कारण हुआ । उस व्यक्ति ने बुद्धि द्वारा मन को नियंत्रित किया। इस प्रकार बुद्धि द्वारा मन के विचारों को नियंत्रित करने का अभ्यास करना चाहिए ।
बुद्धि के द्वारा मन को, मन के द्वारा इंद्रियों को नियंत्रित कर के भवसागर को पार करना होगा । बुद्धि का कार्य निश्चय करने का है। हमारे लिए क्या लाभदायक है, क्या हानिकारक, क्या उपयोगी, क्या अनुपयोगी, किसमें सुख,किसमें दुख आदि। मन का कार्य इच्छा, राग, द्वेष, आसक्ति भाव आदि बनाना है। मन और बुद्धि के बीच युद्ध चलता रहता है। परंतु हमारी बुद्धि का जो निश्चय होगा, उस पार हमारे जीवन की दिशा निर्भर करेगी। मान लें किसी की बुद्धि ने निश्चय किया पैसे में ही सुख है।जीवन में सफलता, असफलता धन पर ही निर्भर करेगी तो वह व्यक्ति धन कमाने को ही अपना लक्ष्य बनाएगा। महात्मा गांधी जी की बुद्धि ने निश्चय किया कि सत्य और अहिंसा से विजय होगी तो वे उसी पर चल पड़े और भारत को आजादी दिलवा दी। बाइबल में कहा है “we walk by faith, not by sight” हम आंखों से नही, विश्वास से चलते हैं। हमारा विश्वास जहां है, उसी आधार पर हम चलते हैं। बुद्धि का कार्य विश्वास और मन का कार्य इच्छाएं बनाना है। अतः बुद्धि को सही ज्ञान द्वारा प्रकाशित करके मन को नियंत्रित करते हुए परमानंद का लक्ष्य पाया जा सकता है।
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