दुःख का कारण

भगवान ने हमको मानव देह भगवतप्राप्ति के लिए दिया है लेकिन माया के अज्ञान के कारण हमने एक बड़ी गलती ये कर दी कि अपने को आत्मा होते हुए शरीर मान लिया । जिस प्रकार गणित में 2+2 में 4 के स्थान पर 5 लिख दे तो आगे का का सब गणित गलत हो जाता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा के सही नातेदार भगवान को अपना मान कर संसार के नातेदारों को अपना मानने पर हमको शरीर संबंधी दुख मिलते हैं। हम ये माने हुए हैं कि हम शरीर हैं और जिनको इस जन्म में हम नातेदार कहते हैं, उनमें आसक्ति होने के कारण अगले जन्म में वे ही हमारे नातेदार बनेंगे और ये नाटक अनादि काल से अनंत बार से होता चला रहा है। भगवान की बहुत कृपा है कि वे पूर्व जन्म का भूला देते हैं अन्यथा संसार में सर्वत्र लड़ाई झगड़ा शुरू हो जाए। तो इस प्रकार आत्मविस्मृति के कारण हम शरीर संबंधी सुखों के पीछे भाग रहे हैं।हम ये जानते हैं कि हम सुखी नही हैं, नाना प्रकार के तनाव जीवन में पाले हुए हैं किंतु हम ये नहीं जानते कि दूसरे भी सुखी नहीं हैं।यदि हमको ये बोध हो जाए कि संसार में कोई सुखी नहीं हैं, हर कोई किसी किसी प्रकार से दुखी है तो तुरंत वैराग्य हो जाए और भगवान के सन्मुख हो जाए।इसे समझने की कोशिश करते हैं।एक आदमी हर समय भगवान से झगड़ा करता था कि आपने मेरी किस्मत में ही सारे दुख लिख दिए बाकी सब लोग कितने सुखी हैं।उनके पास गाड़ी, बंगला ,पैसा आदि सब है और मैं इतना गरीब हूं।भगवान ने उसकी आंखे खोलने की सोची।रात्रि में जब वह सोया तो स्वप्न में उसे आदेश दिया कि तुम्हारे जितने भी दुख हैं,सब एक बोरे में डाल कर मेरे मंदिर जाओ मैं तुम्हें वहा मिलूंगा।उसकी नींद खुल गई , उसने भगवान की आज्ञा पालन करने का सोचा और उनका आदेश मान कर सारे दुख बोरे में भरकर सुबह अंधेरे अंधेरे घर से निकल पड़ा। वह क्या देखता है कि उसके अड़ोसी पड़ोसी सब एक एक बोरी लेकर रहे हैं।वह सोच में पड़ गया, इन्हें भी दुख है, भगवान ने इन सबको भी स्वप्न दिया है। ये सब देखने में तो बड़े सुखी लगते हैं और इनका बोरा तो मुझसे भी बड़ा है। उसे बहुत आश्चर्य हुआ खैर,सब मंदिर पहुंचे । भगवान ने आकाशवाणी की कि इस दीवार पर कील गड़े हुए हैं। अपने अपने बोरे कील में लटका कर बगल में खड़े हो जाओ और सोच लो कौनसा बोरा बढ़िया है, जो बोरा  पसंद आए, मन ही मन सोच लें। कुछ समय के लिए बिजली जायेगी, उसी दौरान अपनी पसंद के बोरे के पास चले जाएं। जब बिजली आएगी तब जो व्यक्ति जिस बोरे के पास खड़ा होगा, उसे वो बोरा लेना होगा। कुछ ही देर में बिजली बंद हो गई और जब बिजली आई तो पाया गया कि सब अपने अपने बोरो के पास ही खड़े हैं।ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हर व्यक्ति ने थी सोचा स्वयं के दुख तो वह जानता है परंतु दूसरे के बोरे में क्या निकले नहीं जानता, हो सकता है कुछ ज्यादा दुख निकले। तो इस प्रकार यह भ्रम दूर हो गया कि हम ही दुखी हैं बाकी सब सुखी हैं जब तक भगवान को प्राप्त नहीं कर लेते तब तक कोई भी सुखी नहीं हो सकता। 

अत: गड़बड़ी का मुख्य कारण आत्मविस्मृति है। ये गड़बड़ी तब ठीक होगी जब हम निश्चय करेंगे कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूं तब आत्मा के सुख के लिए प्रयत्न करेगें । हम चूने के पानी को मथ रहे हैं और मक्खन निकलने की आशा कर रहे हैं इस बात से अनजान हैं कि मक्खन तो दूध, दही से निकलता है। हम गलत जगह कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मानव देह का महत्व समझते हुए अब भगवान को पाने के लिए तीव्र प्रयत्न करना होगा। भगवान तो हमारे अंदर ही हैं। सिर्फ मन से उन्हें प्रेम करना है वो दिव्यानंद हमें प्राप्त हो सकता है और मानव देह सफल बना सकते हैं।हमने अपने जीवन में हमेशा बाहर की परिस्थिति को दोष दिया है। जीवन भर कभी परिवार वालों पर, कभी मित्रों पर, कभी परिस्थिति पर दोषारोपण किया। किंतु कभी अपनी जिम्मेदारी नहीं मानी। हमारी भक्ति करने की अंदर से ही इच्छा नहीं है और हम परिस्थिति को दोष देते हैं। 

कोई भी परिस्थिति हमको बुरा कार्य करने को प्रेरित या पापात्मा नहीं बनाती है बल्कि पाप करने की मंशा हमको पापात्मा बनाती है। परिस्थिति हमको बनाती नहीं है वह हमारी आंतरिक इच्छाओं को व्यक्त करने का अवसर देती है। परिस्थिति को ठीक करने के लिए हमको अपने मन से युद्ध करना होगा ।अंदर मन को ठीक कर दिया तो बाहर की परिस्थिति अपने आप ही ठीक हो जाएगी।भक्ति में उधार नहीं करना चाहिए। अपने मन को नियंत्रण कर के भगवद्भक्ति में जुट जाना होगा। संसार को दोष देना व्यर्थ है क्योंकि संसार ईश्वर का रूप है। ईश उपनिषद के प्रथम मंत्र के अनुसार भगवान ने संसार बनाया ऐसा नहीं है वरन भगवान ही संसार बन गए जैसे मकड़ी अपना जाल बनाने के लिए धागा अपने अंदर से निकलती है अर्थात मकड़ी स्वयं धागा बन जाती है । वैदिक फिलासफी के अनुसार भगवान ही संसार के निमित्त एवम उपादान के कारण है। भगवान ने संसार बनाया और तत्व भी वे ही बन गए। संसार भगवान का ही रूप है, भगवान का रूप होने के कारण इस  संसार में कोई त्रुटि नहीं है। संसार बिलकुल ठीक ठीक बनाया गया है इस लक्ष्य से कि जीव अनादि काल से मायाधीन है, दुख पा रहा है तो ठीक ठीक उन्नति कर के मायातीत हो जाए । परंतु लोग प्रश्न करते हैं कि यदि संसार भगवान का बनाया हुआ त्रुटि रहित है तो फिर मनुष्य को दुख क्यों है , तरह तरह की बीमारियां क्यों हैं? हमारे जीवन में कष्ट और दुख की परिस्थिति इसलिए आती है कि हम उसका सामना करते हुए अपनी उन्नति करें और जीवन में सफल बने। यह समझे रहे कि जीवन में सफलता चालाकी से नहीं मिलती बल्कि सहनशीलता, नम्रता, निष्ठा, कर्मठता , स्वच्छता और अपने अंदर का साहस बढ़ाने से मिलती है।

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
  • दुःख का कारण

दुःख का कारण

May 15th, 2023|0 Comments

भगवान ने हमको मानव देह भगवतप्राप्ति के लिए दिया है लेकिन माया के अज्ञान के कारण हमने एक बड़ी गलती ये कर दी कि अपने को आत्मा होते हुए शरीर मान लिया । जिस प्रकार ...