मनुष्य को मानव देह का महत्व समझना चाहिए। समय रहते अपनी बिगड़ी बना लेनी चाहिए, लेकिन उधार करने की आदत के कारण अवसर चूक जाता है। हमको मानव देह पहले भी मिला है और हमने प्रवचन भी सुने हैं, परंतु हर बार हमारी बुद्धि ने बहकाया, स्वयं लापरवाही की और दोष माया को देते रहे।कभी समय को दोष दे दिया कि जब समय आएगा तब करेगें, कभी भाग्य को दोष दिया कि भाग्य में होगा तो भगवान के शरणागत हो ही जाएंगे । कभी तो हद ही कर दी कि भगवान की इच्छा होगी तो ही भक्ति हो पाएगी। इस प्रकार हर जन्म में बहाने बनाते रहे। जो करना था वो नहीं किया। संत कहते हैं मानव देह पाकर यह स्वर्णिम अवसर नहीं गंवाना है। भगवत प्राप्ति इसी शरीर में संभव है क्योंकि यह ज्ञान प्रधान भी है और पुरुषार्थ युक्त भी है। तो विवेकपूर्वक सोच कर भगवान की ओर चलना चाहिए। लेकिन हम सोचते हैं कि अभी जल्दी ही क्या है? अभी तो हम मात्र 25 वर्ष के हैं। अभी से राधे राधे करें, ठीक नहीं। अभी संसारी विषयों का आनंद उठा लें 10-12 साल बाद भक्ति करेंगे। 10 साल बाद फिर संतो ने याद दिलाया लेकिन फिर नया बहाना कि अभी तो बच्चों की पढ़ाई, शादी करनी है, अभी कैसे साधना में लगे।
अभी और कुछ साल दे दीजिए , फिर अवश्य ही भगवान में लग जायेंगे। कुछ सालों का समय बीतने पर पोता, पोती को संभालने में व्यस्त हो गए और भगवद भजन का समय गंवा दिया। अंत समय आ गया और बिना कमाई किए ही चल दिए। इस प्रकार कर लेंगे कर लेंगे करते करते अनंत जन्म बीत गए, संत जगा जगा कर थक गए लेकिन हम नहीं माने और संसार के चप्पल, जूते खाते रहे। लापरवाही हमारी और दोष माया को देते रहे यह जानते हुए भी कि शरीर नश्वर है, सदा के लिए नहीं मिला है, एक दिन मिट्टी में परिवर्तित हो जायेगा।
कृपालुजी महाराज कहते हैं कि ‘अवसर बीत्यो जात, अरे मन ‘ ऐ मनुष्यों ! अवसर बीता जा रहा है। मृत्यु निकट आती जा रही है। आयु का कोई भरोसा नहीं है।आयु तरंगों के समान है और जीवन बुलबुले के समान है। तरंगे आती है, बुलबुले समाप्त होते जाते हैं।उसी प्रकार मनुष्य जीवन भी बुलबुले के समान है, कल का दिन मिले न मिले।इसलिए सावधान रहना चाहिए। महाभारत के समय पांडवों व यक्ष का आख्यान हम ने सुना ही है।अपने प्रश्नों के उत्तर न मिलने पर यक्ष चारों पांडवों को अपनी ओर खींच लेता है। अंत में धर्मराज युधिष्ठिर जब उसके पास पहुंचते हैं और उसके 60 प्रश्नों के सही उत्तर देते हैं। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? का उत्तर युधिष्ठिर द्वारा यह दिया गया कि प्रति क्षण लोग यमालय की ओर जा रहे हैं और शेष लोग देख रहे हैं लेकिन सोचते हैं कि मैं तो अभी जीऊंगा, कोई अपनी मृत्यु के बारे में नहीं सोचता है।ये सबसे बड़ा आश्चर्य है। इसीलिए हम भी भक्ति में विलम्ब करते जाते हैं और कल कल का उधार करते जाते हैं।
कल तो भविष्य में है। वर्तमान हमारे हाथ में है, उसे पकड़ना होगा। यही उपदेश रावण ने अंतिम समय में लक्ष्मण को दिया था कि शुभ कार्य करने में देरी नहीं करना चाहिए,तुरंत करो और बुरा कार्य करने की मंशा आए तो उसे टाल दो। हो सकता है कुछ समय बाद बुद्धि अपना निर्णय बदल दे और हम पाप करने से बच जाए। तो कहने का तात्पर्य यह कि एक बार समझ में आ गया कि मानव देह का महत्व क्या है, तो बिलकुल देरी नहीं करना चाहिए। जब तक शरीर स्वस्थ है, इंद्रियों में शक्ति है तो भगवान की ओर लगा देना चाहिए वरना बाद में पश्चाताप ही होगा । भगवान ने बुढ़ापा चेतावनी के तौर पर बनाया है कि अब भी चेत जाओ और भक्ति साधना में जुट जाओ।साधना की गति बढ़ाने के लिए इस कथानक पर ध्यान दीजिए। संत एकनाथ के पास एक आदमी गया और वही बात पूछने लगा जो आमतौर पर सभी पूछते हैं कि भगवान में मन नहीं लगता , क्या करें? एकनाथ जी ने उसे गौर से देखते हुए कहा तुम भगवान में मन न लगने की बात कर रहे हो, मैं स्पष्ट देख रहा हूं कि अगले सात दिनों में तुम्हारी मृत्यु होने वाली है।सुनकर वह व्यक्ति दंग रह गया। त्रिकालदर्शी संत के मुख से ऐसी बात सुन वह व्यक्ति संत के चरणों में गिर गया और मुक्ति का उपाय पूछने लगा। एकनाथ जी ने कहा कि तुम संसारी प्रपंचों से दूर हो जाओ और सातवे दिन आओ तो मुक्ति की युक्ति बताएंगे। वो व्यक्ति इस ज्ञान के साथ वापस गया कि अब मेरे पास सात दिन ही बचे हैं।उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण ही बदल गया सभी प्रकार के राग, द्वेष प्रपंच उसके मन से निकलने लगे और वह भगवान की ओर उन्मुख होने लगा। सांतवे दिन वह संत के पास पहुंचा कि आज मेरा अंतिम दिन है, क्या करूं,आप बताइए। एकनाथ जी ने पूछा तुम्हारा मन भगवान में लग रहा है या अब भी संसार में ही जा रहा है?उसका उत्तर था भगवान के सिवा और कहीं नहीं जा रहा। संत एकनाथ जी ने समझाया कि तुम्हारी बुद्धि में बैठ गया कि आज मेरा अंतिम दिन है तो मन भगवान में ही लग रहा है ।
अंतिम दिन के भय से मन भगवान में लगने लगा। मनुष्य को प्रत्येक दिन अंतिम समझ कर भक्ति करना चाहिए, और साथ ही भगवान की कृपा पर बलिहार जाना चाहिए कि उन्होंने और एक दिन दिया भक्ति करने के लिए, अपनी पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए। भक्त कवि नारायण ने कहा है ‘दो बातन को भूल मत, जो चाहे कल्याण । नारायण इक मौत को, दूजो श्री भगवान। जीवन क्षणभंगुर है, कभी भी छिन सकता है। ऐसा ज्ञान बुद्धि में रख कर अपने आत्मविकास और जीवन परिवर्तन के प्रयास में तीव्रता लानी है।
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